क्रिसमस का सही शब्दों में अर्थ होता है अपनी खुशियां भूलकर केवल दूसरों का सोचना और दूसरों में खुशियां बांटना। स्वप्न फाउंडेशन के युवा रेंजर्स ने क्रिसमस के इस अर्थ को सही मायने में दर्शाया। वह निशातगंज स्थ्तित गुड बैकरी के पीछे बसी झोंपड़ पट्टियों में गए और वहां उपस्थित बच्चों के साथ क्रिसमस मनाया।
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स्वप्न के रेंजर्स अपने मिशन मार्गदर्शन के अंतर्गत उन्हीं झुग्गियों में बच्चों को पढ़ाते भी हैं। क्रिसमस के दिन उन बच्चों को रेंजर्स ने यीशु मसीह के जन्म की कहानी सुनाई एवं क्रिसमस मनाने के पीछे का अर्थ भी समझाया।
इसके साथ ही बच्चों ने नृत्य प्रस्तुति भी दी जो की उन्हें उनकी स्वप्न की अध्यापिकाओं ने तैयार करवाई थी। रेंजर्स ने बच्चों के अंताख्शरी एवं पहेलियाँ बुझाने के खेल भी खेले। कार्यक्रम के अंत में बच्चों को उपहार भी दिया गए और कक्षा में अव्वल प्रदर्शन दिखा रहे छात्रों को पुरुस्कार से नवाज़ा गया। बच्चों की खुशियों में चार चाँद लगाने वहाँ सैंटा क्लॉस भी आये और बच्चों में टॉफी बाँटी और फ़िर बच्चों ने जिंगल बेल गाना गा कर कार्यक्रम का समापन किया।
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इसके बाद स्वप्न रेंजर्स ने सड़क किनारे एवं सिग्नल पर भी गरीब बच्चों में खाना एवं मिठाई बाँटी तथा उन बच्चों के चेहरो की मुस्कान ने रेंजर्स का दिन बना दिया । स्वप्न के संस्थापक श्री अच्युत त्रिपाठी का कहना है की हमें असल ज़िंदगी में ज़रूरतमंदो के लिए सैंटा (खुशियाँ बाँटने वाला) बनना चाहिए ।
25 दिसम्बर को ही इसलिए मनाते हैं क्रिसमस
क्रिसमस जीसस क्रिस्ट के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। जीसस क्रिस्ट को भगवान का बेटा कहा जाता है। क्रिसमस का नाम भी क्रिस्ट से पड़ा। बाइबल में जीसस की कोई बर्थ डेट नहीं दी गई है, लेकिन फिर भी 25 दिसंबर को ही हर साल क्रिसमस मनाया जाता है। इस तारीख को लेकर कई बार विवाद भी हुआ। लेकिन 336 ई। पूर्व में रोमन के पहले ईसाई रोमन सम्राट के समय में सबसे पहले क्रिसमस 25 दिसंबर को मनाया गया। इसके कुछ सालों बाद पोप जुलियस ने आधिकारिक तौर पर जीसस के जन्म को 25 दिसंबर को ही मनाने का ऐलान किया।