बिहार चुनाव 2020 : बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं ऐसे में सभी पार्टियां अपनी अपनी तैयारियों में जुट चुकी है कोई पोस्टर से प्रचार कर रहा है तो कोई सोशल मीडिया पर वार कर रहा है लेकिन इस राजनीतिक माहौल में एक चीज ऐसी हुई है जो पूरे तीन दशक बाद देखने को मिली है, जी हां हम बात कर रहे हैं सवर्ण राजनीति की, बिहार में करीब तीन दशक बाद सवर्ण राजनीति देखने को मिली है टिकट बंटवारे में करीब-करीब सभी दलों ने सवर्णों को तवज्जो दिया है।
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RJD और JDU अभी तक दलित और पिछड़ों की राजनीति करते रहे हैं लेकिन पूरे 3 दशक बाद इस बार सवर्ण का खास ख्याल रखा जा रहा है बता दें कि बिहार की भारतीय जनता पार्टी ने तो खुलकर सवर्णों को टिकट बांटा है, बता दे दलित और पिछड़ों की कई सालों से राजनीति करने वाले रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा भी इसी रणनीति पर आ बैठी है, लोजपा भी सवर्णों को जोड़ने में पीछे नहीं हैं हालांकि नीतीश कुमार ने social engineering के तहत अपने जनाधार वाले जातियों के अलावा भी महिलाओं के साथ-साथ सवर्णों को भी उम्मीदवार बनाया है बिहार में यह राजनीति फिर फिर वापसी करती नजर आ रही है।
क्या है सवर्ण राजनीति ?
बिहार में कई सालों से राजनीतिक दल दलित और पिछड़ों की राजनीति कर रहे हैं दलित और पिछड़ों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जाता था लेकिन अब इसमें ऊंची जाति के लोग यानी सवर्ण जातियों को भी शामिल किया जा रहा है हांलाकि यह कोई पहली बार नहीं है, आज से तीन दशक पहले यह कुछ चीज है करी जाती थी लेकिन उसके बाद दलितों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जाने लगा।
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60 प्रतिशत तक सवर्ण उम्मीदवा
अभी तक के हुए टिकट विवरण पर अगर निगाहें डालें तो भारतीय जनता पार्टी ने करीब 60 फीसद सवर्ण उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की तैयारी कर ली है कांग्रेस ने भी सवर्ण उम्मीदवार करीब करीब इतने ही देखने को मिल जाते हैं वहीं अगर जेडीयू की बात करें तो इसमें भी पिछले चुनाव के मुकाबले में इस बार ज्यादा सवर्णों को मौका दिया है, वहीं बिहार की बड़ी पार्टी RJD ने भी अपने राजनीतिक पैत्रो में बदलाव किया।